बुधवार, 26 सितंबर 2012

मेरा क़स्बा

कभी कभी  इन शहरों की बड़ी बड़ी इमारतों के आस पास घूमता हुआ ....और अपनी जिंदगी की तलाश करते हुए अपने बचपन के दिन और अपना वो छोटा सा शहर बहुत याद आता है ....जहाँ सब अपने थे। छतों से छतें  मिली थी। आसमानों में पतंगे थी।कभी तितली पकड़ने के लोए दौड़े जाते थे।कभी कंचे खेलते पकडे जाने पर बहुत मार भी खाते थे। बिजली नहीं आती थी पर लालटेन की वो रोशनी और उस रौशनी में उड़ते हुए पतंगे .अजीब सा  था सब कुछ ... पर हाँ सकून  था। शाम को जब गाय  का चारा डालते थे और पिताजी सिखाते थे की कैसे दूध निकालते  हैं और आज भी याद है जब 8 वी  में था  और पहली बार पूरी बाल्टी दूध से भरी थी मैंने खुद गाय  का दूध निकाला  था उस दिन मुझे लग रहा था की मैं बहुत ताकत वर हो गया हूँ . ....और हाँ मेरा कालेज  ..... क्या अध्यापक थे हर  घंटा टाइम से लगता और अध्यापक वो भी सरकारी अध्यापक ऐसे पढ़ाते  थे की अगर वो नहीं पढ़ाएंगे तो उनकी तनख्वाह कट जाएगी। ....पूरी सिद्दत से ........पढ़ाते थे .....पर सिनेमा कभी नहीं देख पाए क्युकी छोटा सा शहर था मेरा सब एक दुसरे को जानते थे तो भला ऐसे में सिनेमा देखने का जोखिम कैसा उठा सकते थे ...पर क्रांतिकारी  केबल टीवी आया और नरसिंह राव जी की सरकार ने हमे नए नए बाज़ार दिये .....तब उम्र जयादा नहीं थे ....8-10 के रहे होंगे ......लगता था एक दिन सारा जहाँ लूट लेंगे .....बहुत अच्छा था सब ........नवरात्रों पर पूरा शहर सजाया जाता था ...फिर नवमी पर जो बारात निकलती थी .......वाह  भाई वाह  .....कित्ती भीड़ होती थी ....आस  पास के हजारों गाँव से उस छोटे से कसबे में मेला लग जाया करता था ...सुना है अब भी निकलती है ....पर पिछले ...12 सालों से मैंने नहीं देखी  है .......जब से अपना क़स्बा छोड़ा है ...और आये हैं महानगर की चका चौंध में लगता है बहुत कुछ छूट गया है ....पर कभी कभी वो सब बहुत याद आता है .....आखिर बचपन काटा  है मैंने वहां पर .....पर अब अपना गाजियाबाद से भी बहुत प्यार है,,सायद ये शहर मेरी जवानी की पहली मोहब्बत है .....हाँ और वो वाली मोहब्बत की भी,....आज मैं इस शहर से बहुत प्यार करता हूँ ...और शायद शहर भी ....पर अपने उस छोटे से शहर को मैंने आज भी जिन्दा रखा है अपने दिल के किसी  कोने में ....वहां के गोलगप्पे ...समोसे ...चाट .....आज भी इस हल्दीराम से लाख बेहतर हैं स्वाद में ......खैर यही कह सकता हूँ।।आज इन ऊँची ऊँची इमारतों के बीच में .......

.''''''अब मैं राशन की कतारों में नजर आता हूँ ...............अपने खेतों से बिछड़ने की सजा पता हूँ''''''''' .........




वैभव अवस्थी 

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