सोमवार, 26 सितंबर 2011

गरीबी के आंकड़े....

अभी कुछ रोज पहले भारत सरकार के योजना आयोग ने एक शपथ पत्र सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया, जिसमे उन्होंने कहा कि भारत में शहर में रहने वाला व्यक्ति जो कि ३२ रूपये एक दिन में कमाता है और जो व्यक्ति गाँव में रहता है तथा एक दिन में २६ रूपये कमाता है वो गरीब नहीं है और उसे सरकार की तरफ से गरीबों को मिलने वाली रियायतें नहीं मिलने चाहिए....हालाँकि आप हम और यहाँ तक की इस योजना आयोग को चलाने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और मोंटेक सिंह अहलुवालिया सभी सच्चाई जानते हैं...कि ये आंकड़े फर्जी है और इतने पैसों में दंघ का जहर भी नहीं आ सकता है जिसे कहकर कि आत्महत्या भी कि जा सके , ये सिर्फ इसलिए बनाये गए हैं ताकि गरीबी का आंकड़ा कम दिखा सके और सामानों पर मिल रही सब्सिडी को खत्म किया जा सके..और ये जो एक फितूर है कि साहब ८ % की विकास दर पकडनी है..उसे पकड़ सके और दुनिया में अपनी अर्थव्यवस्था का डंका बजा सकें.....सब कुछ ठीक है..पर सरकार का क्या काम होता है, उसका काम होता है..अपनी जनता को ज्यादा से ज्यादा सुख सुविधाए मुहैया करवाना ..सरकार कोई लाला नहीं है जो बाज़ार में बिज़नस करने के लिए बैठी है और ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा सके...सरकार का काम है मुनाफा हो न हो..चाहे अपनी जेब से पैसा खर्च करने पड़े..पर जरुरी है की देश की जनता, देश के गरीब..और देश की किसान ,इनका हित हो..ये सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है....और इन आंकड़ों से कुछ नहीं होता है...आज भारत के ६२७ जिलों में आप खुद जाके देखे तो १०० एक जिलों को छोड़ दे, तो बकाया में हालत ज्यादा ख़राब हैं......अब आते है सब्सिडी पर..जिसका रोना अधिकतर सरकार रोती है कि साहब ...पेट्रोल..और गैस सिलेंडर , खाद पर बहुत सब्सिडी दे रहे हैं....ये कम होनी चाहिए...जरुर कम करे..पर पहले..उधोगों के नाम पर बड़े बड़े औधोगिक घरानों को मिलने वाली सब्सिडी हटाये आप....नेताओं को मिलने वाली सब्सिडी हटाये आप...बड़े अधिकारिओं को मिलने वाली सब्सिडी हटाये आप.....तब आप इस गरीब की सब्सिडी हटाने का हक रखते हैं....खुद अरबों खरबों अपने ऐशी आराम पर खर्च करने वाली सरकार के मंत्रिओं और अधिकारिओं को कोई हक नहीं बनता है कि गरीबों की सब्सिडी हटाये..या तरक्की के नाम पर लोगों को मार दे....अपने देश में कुछ हद तक ये होने लगा है, जहाँ तरक्की के नाम पर लोगों की कीमत कुछ नहीं है...जिसका परिणाम हम नक्साल्वाद के रूप में सामने भी देख रहे हैं पर फिर भी नहीं चेत रहे हैं......देखिये...सरकार अपनी नीतियाँ बनाये, और हर लोकतान्त्रिक सरकार चाहती है कि देश से गरीबी मिटे..पर गरीबी मिटाने के नाम पर आप गरीबों को ही मिटा दे, ये कहाँ तक उचित है.....गरीबों कि गिनती का आंकड़ा काम करने से गरीब काम नहीं होंगे....आप उनके लिए योजनाये तो बनाये ही पर जरुरी है कि उन योजनाओं का क्रियान्वयन भी उचित तरीके से हो और इसकी जवाबदेही भी तय करे..तब जाकर कहीं इस देश से गरीबी कम होगी.....

बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

माँ

प्रिय मित्रों

नमस्कार,


दोस्तों आज मुझे एक पुराना गाना याद आया .....जो श्री नन्द लाल पाठक ने लिखा था...और भारत के कई दिग्गज गायकों ने जिसे अपनी आवाज दी.....मैं उस गाने के शब्द लिख रहा हूँ ...उम्मीद है कि आप सबको जरुर पसंद आयेगे......ये कविता या गाना मुझे अन्दर तक शांति देता है.....और मुझे भी अपना बचपन और माँ कि
सुनाई ने हुई कहानियां याद आने लगती है........



माँ सुनाओ मुझे वो कहानी,
जिसमे राजा न हो न हो रानी,

जो हमारी-तुम्हारी कथा हो,
जो सभी के ह्रदय कि व्यथा हो,

गंध जिसमे भरी हो धरा की,
बात जिसमे न हो अप्सरा की,

हो न परियाँ जहाँ आसमानी,
माँ सुनाओ मुझे वो कहानी,

वो कहानी जो हँसना सिखा दे,
पेट की भूख को जो भुला दे,

जिसमे सच कि भरी चांदनी हो,
जिसमे उम्मीद कि रोशनी हो,

जिसमे न हो कहानी पुरानी,
माँ सुनाओ मुझे वो कहानी...................




धन्यवाद

आपका वैभव....

वृद्धाअवस्था

प्रिय मित्रों,
नमस्कार,



आज बहुत समय के बाद वापस ब्लॉग पर आना हुआ....कुछ जिंदगी की जद्दोजहद में ऐसे फंसे कि लिख ही नहीं पाए...आज लिखने का मूड इसलिए हो गया क्यूंकि आज सुबह मुझे एक वृद्धाअवस्था आश्रम में जाने का अवसर मिला.....मेरे अपने ही शहर में स्थिति इस आश्रम में जब मैं गया और वहां के बुजुर्गों से मिला और उनके जीवन और अनुभवों को सुना और उस दर्द को महसूस किया जो उनके दिलों में बसा हुआ था.........उनकी भीगी आँखों से उनके बारे में सुनते हुए मैं भी रोया....कुछ उनके सामने ..कुछ उनके पीछे.......आज कि इस भागती दौड़ती जिंदगी में क्या हमारे अन्दर अपने माँ- बाप तक के लिए सवेंदना समाप्त हो चुकी है....क्या पैसा ही जीवन में महत्वपूर्ण है....या हम सिर्फ अपने लिए ही जीने लगे हैं....इन्ही सवालों के उत्तर मैं अपने आप से पूछ रहा हूँ ..पर कोई सही उत्तर नहीं मिल पा रहा है......अंतर्द्वंद चल रहा है.......पर संतोष नहीं मिल पा रहा है.......हम इस आधुनिकता कि दौड़ में अंधे हो चुके हैं......जिस देश कि सभ्यता और संस्कृति कि हम दुहाई देते हैं...वहां के संस्कार ये तो न थे.......क्या हम ये भूल जाते हैं कि एक दिन ये बुढ़ापा हम पर भी आयेगा.
इस विचारधारा को बदलना ही होगा.....हमारे बुजुर्ग हमारी धरोहर है...हमारी संपत्ति हैं....वो पूरे सम्मान और अधिकारों के हक़दार हैं....


जय हिंद
जय भारत

आपका वैभव